कार्बन फुटप्रिन्ट क्या होता है? इसका क्या महत्व है? भारत देश में इसके ऊपर क्या कार्य किया गया है?

आइए, संक्षेप में जाने कार्बन फुटप्रिन्ट के बारे में।

ENVIRONMENT

Akanksha

7/12/20241 min read

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कार्बन फुटप्रिन्ट क्या होता है?

कार्बन फुटप्रिन्ट एक मापदंड है जो यह दर्शाता है कि किसी व्यक्ति, संगठन, या देश द्वारा ग्रीनहाउस गैसों का कितनी मात्रा में उत्सर्जन किया जाता है। यह मापदंड मुख्यतः कार्बन डाईऑक्साइड (CO2) और अन्य ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन पर आधारित होता है, जो कि ऊर्जा उत्पादन, परिवहन, कृषि, और औद्योगिक गतिविधियों जैसी विभिन्न मानव-निर्मित क्रियाओं से उत्पन्न होते हैं।

कार्बन फुटप्रिन्ट को मापने का उद्देश्य यह समझना है कि हमारी दैनिक गतिविधियाँ और जीवनशैली पर्यावरण पर कितना प्रभाव डाल रही हैं। उदाहरण के लिए, बिजली की खपत, गाड़ियों का उपयोग, और औद्योगिक उत्पादन सभी ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में योगदान करते हैं।

कार्बन फुटप्रिन्ट को घटाने के लिए विभिन्न उपाय अपनाए जा सकते हैं। इनमें सबसे प्रमुख है ऊर्जा की खपत कम करना और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना। ऊर्जा की खपत को कम करने के लिए हमें बिजली का संयमित उपयोग करना चाहिए, ऊर्जा-प्रभावी उपकरणों का उपयोग करना चाहिए, और ऊर्जा की बचत करने वाली आदतें अपनानी चाहिए।

नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करना भी एक महत्वपूर्ण कदम है। सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, और जल विद्युत जैसी नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग करने से हम ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन को कम कर सकते हैं। इसके अलावा, सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करना, पैदल चलना, और साइकिल चलाना भी कार्बन फुटप्रिन्ट को कम करने में सहायक हो सकते हैं।

कार्बन फुटप्रिन्ट को घटाने के अन्य उपायों में पुनः उपयोग और पुनर्चक्रण (recycling) को बढ़ावा देना, ऊर्जा-प्रभावी इमारतों का निर्माण, और ग्रीन तकनीकों को अपनाना शामिल है। ये सभी उपाय न केवल पर्यावरण की रक्षा करते हैं, बल्कि हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए एक स्वच्छ और स्वस्थ भविष्य भी सुनिश्चित करते हैं।

कार्बन फुटप्रिन्ट का महत्व

कार्बन फुटप्रिन्ट का महत्व व्यापक और बहुआयामी है। पर्यावरणीय दृष्टिकोण से, कार्बन फुटप्रिन्ट को मापना और उसे घटाने की कोशिश करना आवश्यक हो जाता है, क्योंकि इससे ग्रीनहाउस गैसों के स्तर को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। ग्रीनहाउस गैसों के बढ़ते स्तर के कारण जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वॉर्मिंग जैसी गंभीर समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इन समस्याओं के परिणामी प्रभाव न केवल पर्यावरणीय संतुलन को बाधित कर रहे हैं, बल्कि सामाजिक और आर्थिक दृष्टिकोण से भी गंभीर चुनौतियाँ उत्पन्न कर रहे हैं।

जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप ग्लेशियरों का पिघलना, समुद्र स्तर में वृद्धि, और प्राकृतिक आपदाओं की आवृत्ति और तीव्रता में वृद्धि हो रही है। ये प्रभाव न केवल पर्यावरण पर, बल्कि मानव समाज पर भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हानिकारक प्रभाव डाल रहे हैं। उदाहरणस्वरूप, बाढ़, सूखा, और वनाग्नि जैसी घटनाओं के कारण कृषि उत्पादन में कमी आ रही है, जिससे खाद्य सुरक्षा पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इन समस्याओं के आर्थिक प्रभाव भी व्यापक हैं, जिसमें पुनर्निर्माण, आपदा प्रबंधन और स्वास्थ्य सेवाओं पर बढ़ते खर्च शामिल हैं।

व्यक्तिगत और सामूहिक स्तर पर कार्बन फुटप्रिन्ट को कम करने के कई फायदे हैं। व्यक्तिगत स्तर पर, ऊर्जा की खपत को नियंत्रित करके न केवल बिजली और ईंधन की बचत की जा सकती है, बल्कि वित्तीय बचत भी संभव है। सामूहिक स्तर पर, समुदाय और संगठन मिलकर कार्बन फुटप्रिन्ट को कम करने के लिए सामूहिक प्रयास कर सकते हैं, जिससे बड़े पैमाने पर सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं। सामूहिक प्रयासों में अक्षय ऊर्जा स्रोतों का उपयोग, ऊर्जा दक्षता में सुधार, और शहरी वानिकी जैसे उपाय शामिल हो सकते हैं, जो पर्यावरण को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

भारत में कार्बन फुटप्रिन्ट को कम करने के उपाय

भारत में कार्बन फुटप्रिन्ट को कम करने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए हैं। इनमें प्रमुख रूप से राष्ट्रीय सौर मिशन, ऊर्जा संरक्षण अधिनियम, और स्वच्छ भारत अभियान शामिल हैं। राष्ट्रीय सौर मिशन का लक्ष्य 2022 तक 100 गीगावॉट सौर ऊर्जा का उत्पादन करना है, जिससे न केवल ऊर्जा की आवश्यकता पूरी होगी बल्कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में भी कमी आएगी।

इसके अलावा, ऊर्जा संरक्षण अधिनियम 2001 को लागू किया गया है, जिसके तहत ऊर्जा के दक्ष और प्रभावी उपयोग को बढ़ावा दिया जा रहा है। इस अधिनियम के अंतर्गत बड़े उद्योगों को ऊर्जा ऑडिट करना अनिवार्य किया गया है, ताकि ऊर्जा की फिजूलखर्ची को कम किया जा सके। स्वच्छ भारत अभियान भी कार्बन फुटप्रिन्ट को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जिसका उद्देश्य स्वच्छता और कचरा प्रबंधन में सुधार करना है।

कार्बन फुटप्रिन्ट को कम करने में निजी और गैर-सरकारी संगठनों का भी महत्वपूर्ण योगदान है। विभिन्न एनजीओ और कॉर्पोरेट संस्थान वृक्षारोपण, ऊर्जा के नवीकरणीय स्रोतों का उपयोग, और जागरूकता कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं। उदाहरण के लिए, टाटा समूह ने अपने उद्योगों में ऊर्जा का प्रभावी उपयोग सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय किए हैं।

भविष्य में कार्बन फुटप्रिन्ट को और भी कम करने के लिए कई योजनाएं और लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। भारत सरकार का लक्ष्य 2030 तक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को 33-35% तक कम करना है। इसके लिए, नवीकरणीय ऊर्जा के स्रोतों का विस्तार, इलेक्ट्रिक वाहनों का प्रोत्साहन, और ऊर्जा के कुशल उपयोग को प्राथमिकता दी जा रही है।